संत कबीर का एक अत्यंत लोकप्रिय दोहा है साँई इतना दीजिए जामे कुटुम समाय | मैं भी भूखा न रहूँ साधु न भूखा जाए | आध्यात्मिक एव
दार्शनिक
से इस दोहे के प्रत्येक शब्द की विस्तृत व्याख्या की गई है| इतनी मर्मस्पर्शी व्याख्या को पढ़ने से पाठक को स्वतः
आत्मबोध हो जाता है तथा जीवन का लक्ष्य स्पष्ट होता है|
मनुष्य को संसार में तमाम तरह की विषम परिस्थितियों से जूझना पड़ता है | कभी- कभी तो वह स्वयं को बीच भँवर में फँसा हुआ पाता है | अभूतपूर्व साहस ,प्रचंड संकल्प शक्ति, धैर्य, व ईश्वर विश्वास के सहारे ही वह अनेक अवरोधों के बीच से अपनी नाव पार लगा सकता है| ऐसी ही सत्य घटनाओं पर आधारित कहानियों व लेखों को इस पुस्तक में संकलित किया गया है | ये मनोरंजक भी हैं और मार्गदर्शक भी | सभी के लिए , विशेष रूप से युवा पीढ़ी के लिए, स्वस्थ , सुखी व संतुष्ट जीवन जीने हेतु यह पुस्तक अत्यंत प्रेरणादायी है|
श्री जगदीश पंडित की रचनाएँ अनेक प्रतिष्ठित पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं| वर्ष 1953 से 2018 के बीच , समय -समय पर लिखे गए लेख, कविता व कहानियाँ (जो उपलब्ध हो सके ) को इस पुस्तक में संकलित किया गया है| 2018 के बाद की रचनाएँ स्वांतः सुखाय भाग -2 में संकलित हैं| भविष्य में उनकी रचनाएँ भी इसी पुस्तक में जुड़ती रहेंगी|
संसार में रहते हुए सैकड़ों प्रकार के बंधनों में बंध कर ही मनुष्य कर्म करता है | इन कर्मों को कर्तव्य कर्म समझ कर निष्काम भाव से करना ही वैराग्य है| गृहस्थ में रहते हुए ,बंधन और वैराग्य में आवश्यक तालमेल रखते हुए, हम अपने जीवन को आनंदमय कैसे बनाएँ - यही जीवन जीने की कला है, यही आध्यात्मिक जीवन शैली है |
भगवान राम जब सोलह वर्ष के थे, तो वे भी तमाम सामाजिक विसंगतियों को देखकर भ्रमित हो गए थे और गंभीर रूप से अवसादग्रस्त थे| उस समय गुरु वसिष्ठ ने उन्हें विस्तार से समझाया ,भ्रम से बाहर निकाला और फिर वे मर्यादा पुरुषोत्तम राम बन सके| योग वसिष्ठ ग्रंथ में इस सब का विशद वर्णन है| इसी ग्रंथ पर यह पुस्तक आधारित है| नोट- यह पुस्तक गायत्री तपोभूमि, मथुरा से प्रकाशित हुई थी, पर अब उपलब्ध नहीं है|
वेद परमपिता परमेश्वर की अमर वाणी हैं| वेदों के द्वारा हमको सांसारिक एवं आध्यात्मिक दोनों प्रकार का श्रेष्ठ ज्ञान प्राप्त होता है| चारो वेदों (ऋग्वेद,यजुर्वेद,सामवेद,अथर्ववेद) से चुने गए 185 वेद मंत्रों की व्याख्या इस पुस्तक में दी गई है| इसमें 5 खंड हैं - ब्राह्मणत्व ,आत्मबल, चरित्र निर्माण, दुष्प्रवृत्ति उन्मूलन, परिवार और स्वास्थ्य| इन वेद मंत्रो से वर्तमान समय में हमें क्या संदेश मिलता है - यही इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य है|
श्री जगदीश पंडित की रचनाएँ अनेक प्रतिष्ठित पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं| वर्ष 1953 से 2018 के बीच , समय -समय पर लिखे गए लेख, कविता व कहानियाँ (जो उपलब्ध हो सके ) को इस पुस्तक में संकलित किया गया है| 2018 के बाद की रचनाएँ स्वांतः सुखाय भाग -2 में संकलित हैं| भविष्य में उनकी रचनाएँ भी इसी पुस्तक में जुड़ती रहेंगी|
द्वारा इन पांच पुस्तकों का उड़िया भाषा में अनुवाद करा कर प्रकाशित कराया है|
उड़ियाभाषी साहित्य प्रेमी इनका लाभ ले सकते हैं|