| जन्म | 05 सितंबर 1933 |
| पिताश्री | स्व. श्री भगवती प्रसाद श्रीवास्तव (14.10.1907-15.05.2002) |
| शिक्षा | बी.एस.सी., एम.ए., एल.एल.बी., विशारद |
सक्रियता
* सेवा निवृत्त (1991) उपनिदेशक अभियोजन आगरा परिक्षेत्र आगरा।
* 1991 से 1993 तक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, झंडेवालान, नई दिल्ली की शाखा सेवा भारती की मासिक पत्रिका सेवा समर्पण के संपादक का दायित्व निभाया।
* 1994 से गायत्री तपोभूमि मथुरा में रहकर संपादन एवं साहित्य साधना में समर्पित।
* विद्यार्थी जीवन से लेखन में रुचि। अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कविता व कहानियाँ प्रकाशित होती रहती हैं।
* व्यावहारिक, आध्यात्मिक, व्यक्तित्व विकास संबंधी विषयों पर अब तक 18 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। अनेक पुस्तकों के अंग्रेजी, गुजराती एवं उड़िया भाषा में अनुवाद भी प्रकाशित हुए हैं।
* वरिष्ठ नागरिक कल्याण समिति, मथुरा की पत्रिका आशीर्वाद का वर्ष 2008 से संपादन।
सम्मान
* मॉरीशस यात्रा के अवसर पर सीनियर सिटिजन कॉउंसिल मॉरीशस द्वारा सम्मानित (2002)
* ज्ञानमंदिर, किशनगढ़ (राज.) द्वारा अध्यात्म सेवी सम्मान (2013)
* साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी, प्रतापगढ़ द्वारा साहित्य सागर सम्मान (2015)
* चञ्चरीक साहित्य संवर्द्धन संस्थान, कीर्ति नगर, जयपुर द्वारा चञ्चरीक स्मृति सम्मान (2018)
* वरिष्ठ नागरिक कल्याण समिति ,मथुरा द्वारा वयोवृद्ध सम्मान (2018)
लेखक परिचय
श्री जगदीश पंडित के मन-मस्तिष्क पूरी तरह से आचार्य जी के विचारों से ओत- प्रोत हैं तथा उनकी प्रत्येक रचना में इनकी स्पष्ट झलक दिखाई देती हैं | गंभीर स्वाध्याय एवं रचनात्मक लेखन के प्रति, विद्यार्थी जीवन से ही, उनकी विशेष रुचि रही है| उन्होंने जो भी पढ़ा, उसे अपने जीवन में जिया भी है और परखा भी | अत्यंत सरल- सुबोध भाषा एवं रोचक शैली में लिखी गई प्रत्येक रचना आपका मनोरंजन भी करेगी और मार्गदर्शन भी | अध्यात्म का व्यावहारिक स्वरुप एवं जीवन जीने की कला सिखाने वाली ये पुस्तकें आप बार -बार पढ़ना चाहेंगे | आपका मन कुछ नया सोचने और रचनात्मक करने के लिए मचलने लगेगा |
एक कर्मठ समाजसेवक के रूप में श्री जगदीश पंडित की पहचान है | उत्तर प्रदेश सरकार के अभियोजन विभाग में सर्वोच्च पद से वर्ष 1991 में सेवानिवृत्त होकर उन्होंने समाज सेवा का संकल्प लिया | वे दिल्ली झंडेवालान में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखा सेवा भारती से जुड़े, दिसंबर 1991 में वानप्रस्थ दीक्षा ली और 'सेवा समर्पण' मासिक पत्रिका के संपादक का दायित्व भी निभाया | 1994 से गायत्री तपोभूमि, मथुरा में रहकर साहित्य साधना एवं ज्ञान प्रसार के कार्य मे व्यस्त हैं| अपनी पेंशन का अधिकांश भाग इन्हीं सेवा कार्यों में समर्पित करते रहते हैं| 89 वर्ष की आयु में भी उनकी ऊर्जा, निष्ठा और लगन युवाओं से भी बढ़कर है |
इस वेबसाइट पर उपलब्ध पुस्तकं नि:शुल्क हैं| आप इन्हें पढ़ें तथा अपने मित्रों व परिचितों को भी इसके लिए प्रेरित करें | आपका यह अमूल्य सहयोग ज्ञान प्रसार के पुण्य प्रयास में बहुत लाभकारी सिद्ध होगा |
संत कबीर का एक अत्यंत लोकप्रिय दोहा है साँई इतना दीजिए जामे कुटुम समाय | मैं भी भूखा न रहूँ साधु न भूखा जाए | आध्यात्मिक एव
दार्शनिक
से इस दोहे के प्रत्येक शब्द की विस्तृत व्याख्या की गई है| इतनी मर्मस्पर्शी व्याख्या को पढ़ने से पाठक को स्वतः
आत्मबोध हो जाता है तथा जीवन का लक्ष्य स्पष्ट होता है|
मनुष्य को संसार में तमाम तरह की विषम परिस्थितियों से जूझना पड़ता है | कभी- कभी तो वह स्वयं को बीच भँवर में फँसा हुआ पाता है | अभूतपूर्व साहस ,प्रचंड संकल्प शक्ति, धैर्य, व ईश्वर विश्वास के सहारे ही वह अनेक अवरोधों के बीच से अपनी नाव पार लगा सकता है| ऐसी ही सत्य घटनाओं पर आधारित कहानियों व लेखों को इस पुस्तक में संकलित किया गया है | ये मनोरंजक भी हैं और मार्गदर्शक भी | सभी के लिए , विशेष रूप से युवा पीढ़ी के लिए, स्वस्थ , सुखी व संतुष्ट जीवन जीने हेतु यह पुस्तक अत्यंत प्रेरणादायी है|
श्री जगदीश पंडित की रचनाएँ अनेक प्रतिष्ठित पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं| वर्ष 1953 से 2018 के बीच , समय -समय पर लिखे गए लेख, कविता व कहानियाँ (जो उपलब्ध हो सके ) को इस पुस्तक में संकलित किया गया है| 2018 के बाद की रचनाएँ स्वांतः सुखाय भाग -2 में संकलित हैं| भविष्य में उनकी रचनाएँ भी इसी पुस्तक में जुड़ती रहेंगी|
संसार में रहते हुए सैकड़ों प्रकार के बंधनों में बंध कर ही मनुष्य कर्म करता है | इन कर्मों को कर्तव्य कर्म समझ कर निष्काम भाव से करना ही वैराग्य है| गृहस्थ में रहते हुए ,बंधन और वैराग्य में आवश्यक तालमेल रखते हुए, हम अपने जीवन को आनंदमय कैसे बनाएँ - यही जीवन जीने की कला है, यही आध्यात्मिक जीवन शैली है |
भगवान राम जब सोलह वर्ष के थे, तो वे भी तमाम सामाजिक विसंगतियों को देखकर भ्रमित हो गए थे और गंभीर रूप से अवसादग्रस्त थे| उस समय गुरु वसिष्ठ ने उन्हें विस्तार से समझाया ,भ्रम से बाहर निकाला और फिर वे मर्यादा पुरुषोत्तम राम बन सके| योग वसिष्ठ ग्रंथ में इस सब का विशद वर्णन है| इसी ग्रंथ पर यह पुस्तक आधारित है| नोट- यह पुस्तक गायत्री तपोभूमि, मथुरा से प्रकाशित हुई थी, पर अब उपलब्ध नहीं है|
वेद परमपिता परमेश्वर की अमर वाणी हैं| वेदों के द्वारा हमको सांसारिक एवं आध्यात्मिक दोनों प्रकार का श्रेष्ठ ज्ञान प्राप्त होता है| चारो वेदों (ऋग्वेद,यजुर्वेद,सामवेद,अथर्ववेद) से चुने गए 185 वेद मंत्रों की व्याख्या इस पुस्तक में दी गई है| इसमें 5 खंड हैं - ब्राह्मणत्व ,आत्मबल, चरित्र निर्माण, दुष्प्रवृत्ति उन्मूलन, परिवार और स्वास्थ्य| इन वेद मंत्रो से वर्तमान समय में हमें क्या संदेश मिलता है - यही इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य है|
श्री जगदीश पंडित की रचनाएँ अनेक प्रतिष्ठित पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं| वर्ष 1953 से 2018 के बीच , समय -समय पर लिखे गए लेख, कविता व कहानियाँ (जो उपलब्ध हो सके ) को इस पुस्तक में संकलित किया गया है| 2018 के बाद की रचनाएँ स्वांतः सुखाय भाग -2 में संकलित हैं| भविष्य में उनकी रचनाएँ भी इसी पुस्तक में जुड़ती रहेंगी|
द्वारा इन पांच पुस्तकों का उड़िया भाषा में अनुवाद करा कर प्रकाशित कराया है|
उड़ियाभाषी साहित्य प्रेमी इनका लाभ ले सकते हैं|